पितृ दोष यह कुंडली में दिखाई देने वाला दोष होता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष है तो उसे पितृ दोष निवारण पूजा करने से अवश्य ही लाभ होगा । पितृ दोष के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए ही यह पूजा की जाती है। पितृ दोष के साथ जन्म लेनेवाले साधक के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव तथा कठिनाइयाँ उत्पन्न होती रहती है। कुछ परिवारोंमें जन्म लेने वाले बच्चो में पितृ दोष देखा जा सकता है, जहाँ शारीरिक एवं मानसिक विकलांगता होती है। पित्रों के शाप के कारण होने वाले दोष को “पितृ दोष” कहा जाता है। पितृ दोष का मूल कारण है पित्रों की श्राद्ध पूजा न करना।
जब परिवार का कोई सदस्य अकाल मृत्यु से या शादी के पहले या अन्य किसी कारण से मृत होता है तो उसका श्राद्ध होना आवश्यक है। ऐसे में श्राद्ध न किये जाने से उस व्यक्ति की आत्मा भटकती रहती है, उसे पृथ्वी पर जन्म भी नहीं मिलता। साथ यही परलोक में भी जगह नहीं मिलती जिस कारण वह आत्मा दुखी रहती है, परेशान रहती है और परिवार में जन्मे अन्य बच्चोंको परेशान करती है या उनकी जीवन में कठिनाइयाँ लाती है। ऐसे में उस व्यक्ति के जन्मकुंडली में ९ स्थान पर जिसे भाग्यस्थान भी कहा जाता है, वहाँ यह पितृ दोष दिखाई देता है। जिसकी वजह से भाग्योदय होने में देरी तथा परेशानियाँ बनती है।
हमारे परिवार के पूर्वज यानी पितृ होते है। मृत परिजनों का विधिवत श्राद्ध कराया जाना आवश्यक है तथा श्राद्ध पक्ष की तिथियों में लोग अपने पूर्वजों की आत्मशांति के लिए तर्पण करते हैं। भाद्रपद मास की शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की कृष्ण अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष कहा जाता हैं। पितृपक्ष में पूर्वजों की शांति के लिए पितृ दोष पूजा की जाती है। पित्रों की शांति न होने से पितृ दोष लगता है।
पितृ दोष पूजा शास्त्र विधि के अनुसार पण्डितजी द्वारा त्र्यंबकेश्वर में की जाती है। त्र्यंबकेश्वर में गुरूजी को ताम्रपात्रधारी पण्डितजी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के मुख्य पुरोहित के रूप में गुरूजी कार्यरत रहते है। अनेक पीढ़ियों से पितृ दोष निवारण पूजा का आयोजन पण्डितजी द्वारा किया जाता है। पितृ दोष पूजा के मुहूर्त की अधिक जानकारी के लिए आप त्र्यंबकेश्वर पण्डितजी से संपर्क कर सकते है।
हमारे पूर्वज जो मृत्यु के पश्चात श्राद्ध के बिना पिशाच योनि धारण करके पृथ्वी पर भटकते है, जिस कारण उन्हें अनेक कष्टों का अनुभव होता है। उनकी आत्मा को उनके परिवार में जन्मे वंशजों से आशा होती है, की वे उनकी मुक्ति का उपाय करे। उनके उत्तराधिकारी या वंशजों द्वारा पितृ शांति उपाय करने से उन्हें प्रसन्नता होती है और वे अपने वंशजों को अनेक आशीर्वाद प्रदान करते है।
रोली, जनेऊ, कपूर, शहद, चीनी, हल्दी, रक्षा सूत्र, हवन सामग्री, देसी घी, मिष्ठान, गंगाजल, कलावा, गुलाबी कपड़ा, हवन के लिए आम की लकड़ी, आम के पत्ते और पांच प्रकार की मिठाई ।
१) सोमवती अमावस्या का दिन पितृ दोष निवारण पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। इस दिन पितृ दोष पूजा कराने से पितृ दोष दूर होता है।
२) पितृ दोष निवारण पूजा अमावस्या तिथि, या पितृ पक्ष के काल में किसी भी दिन की जा सकती है। इस पूजा का उत्तम काल दोपहर का होता है।
३) पितृ पक्ष में हररोज़ पित्रों की शांति के निमित से जल, जौं और काले तिल एवं पुष्प के साथ पित्रों का तर्पण कराने से पितृ दोष दूर होता हैं।
४) पित्रों की मृत्यु तिथिका पता न हो तब सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कराना चाहिए जिसके प्रभाव से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
५) सर्व पितृ अमावस्या और हर अमावस्या के दिन १३ ब्राह्मणों को भोजन दीजिए एवं आपकी इच्छानुसार दक्षिणा देकर आशीर्वाद लेने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।
६) पितृ पक्ष में कौवों को भोजन कराने से पितृ दोष में राहत मिलती है। ऐसी मान्यता है की, पितृ पक्ष में हमारे पितृ कौवों का रूप धारण करके धरती पर अपने परिवार के वंशजों के पास भोजन प्राप्त करने जाते हैं।
७) पितृ पक्ष में गाय की सेवा करने से पित्रों को शांति मिलती है तथा गाय को भोजन कराने से विशेष लाभ मिलता है।
८) महामृत्युंजय मंत्र का जाप २१ सोमवार तक करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।
९) प्रतिदिन इष्ट देवता एवं कुल देवता की पूजा के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से भी पितृ दोष का प्रभाव काम होता है।
१०) पीपल के वृक्ष की १०८ दिन तक निरंतर १०८ परिक्रम करें एवं पित्रों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें।
पितृ दोष पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री एवं पण्डितजी पर पितृ दोष पूजा की दक्षिणा निर्धारित होती है। इस पूजा में कितने गुरूजी उपस्थित होंगे इस पर भी पूजा का मूल्य निर्भर होता है।
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21 Jun '21 MondayCopyrights 2020-21. Privacy Policy All Rights Reserved
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