शिवजी के जटाओंमें गंगाजी कैसे प्रस्थापित हुई इसके बारे मे एक रोचक कथा पुराणों में दी गयी है। जब शिव जी और माँ पार्वती का विवाह संपन्न हो रहा था ,उस विवाह में सभी देव देवता गण उपस्तिथ थे। उस विवाह के समय ब्रम्हाजी वहा मौजूद थे ,और माता पार्वती का रूप देखकर उनको मोह हुआ। उस कारन से वो अति लज्जित हुए और वहासे निकल गए
बादमे फिर उन्होंने शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए तपश्चर्या की ,शिव जी ने उन्हें उस पातक से मुक्ति के लिए त्रैलोक्य के सभी तीर्थो का जल एक कमण्डलु में उनके पास दिया। और उस कमंडलु को उनको धारण करने को कहा। बादमे ब्रम्हदेव ने अपने पापोंका शालन करने के बाद कमंडलु अपने पास ही रखा।
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया था तब ब्रम्हा जी ने उसी जल से उनकी पद्य पूजा की थी।
जब समुद्रमंथन हुआ था ,उसमे से हलाहल विष निकला था। भगवन शिव ने उसे जगत्कल्याण के लिए प्राशन किया था। उसके बजेसे भगवान शिव के शरोर का दाह बढ़ गया।
दाह को काम करने के लिए शिवजी ने ब्रम्हा जी ने दिया हुआ जल अपने जटाओमें धारण कर लिया जिसे हम माँ गंगा के नाम से जानते है।
एक दूसरी कथा ऐसी है की माँ गंगा भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी उसलिए माँ गंगा ने भी तपशचर्या करके भगवन शिव को प्रसन्ना किया पर शिव जी से गंगाजी की मांग स्वीकार नहीं की। और शिवजी ने उनको अपनी सर के ऊपर धारण करने का वचन दिया इसलिए गंगाजी शिवजी के जटाओं में प्रस्थापित है।
माँ गंगा धरती पर २ बार औतारित हुई। पहली बार गंगा नदी धरती पर कैसे औतारित हुई उसके बारेमें जानते है। त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र में गंगा को गोदावरी नाम से जाना जाता है कुछ लोगो इसे गौतमी गंगा कहते है ,ये दक्षिण वाहिनी होने के कारन ऐसे दक्षिण गंगा भी कहा जाता है।
गंगा जी को जब शिवजी ने अपनी जटाओं में धारण किया तो स्वाभाविक रूप से माता पार्वती को बुरा लगा, अपना दुःख कम करने के लिए ये बात माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश जी को बताई। बादमें गणेशजी ,माता पार्वती और उनकी एक दासी “जया “ उन्होंने मिलकर एक योजना बनाई।
उस वक़्त त्र्यंबकेश्वर के प्रदेश में गौतम आश्रम था ,उस आश्रम में दक्षिण देश के सभी ऋषि,मुनि अपने सारे शिष्यगण के साथ यहाँ आकर रुके हुए थे।
दक्षिण देश में उस वक़्त अकाल पड़ा था। इसलिए बाजु के आश्रम के जितने भी ऋषि मुनि थे वो यहाँ आकर रुके हुए थे। क्युकी गौतम ऋषि के आश्रम में अकाल नहीं था, उनकी चावल की खेती थी जो अच्छी तरह से फल फूल रही थी।
तो योजना ऐसी बनी की पार्वती माता की दासी ने गाय का रूप लेना है। और गाय का रूप लेके गौतम ऋषि की खेती में जाकर धान को खाना था। बादमे जब गौतम ऋषि गाय को भगानेकी कोशिश करेंगे तो गाय को मूर्छित होकर मृत होना है। गणेश जी इससे पहले आश्रम में ब्राम्हण पंडित के रूप में आकर रहने लगे थे और गणेश पंडित के नाम से प्रख्यात थे।
जब समय आया तो योजना के अनुसार जया गाय का रूप लेके खेत में धान खाने को गयी ,गौतम ऋषि ने तब उनके हाथ के ढाभ थे यानि कुश थे। उन्हीने उसकी तीलियों से उसको भगाने की कोशिश की तो गाय मृत होगयी। और ऋषि गौतम को गोहत्या का पाप लग गया।
उस पाप से मुक्त होने के लिए गौतम ऋषि ने अपने आश्रम के बाकि ऋषिओ से मार्ग पूछा तो गणेश पंडित ने तब मार्ग बताया की भगवान शिव के जटाओसे बहने वाली गंगा के जल से स्नान करने से आपके पापको से मुक्ति मिलेगी।
ऋषि गौतम ने उसके बाद वर्षो तक भगवान शिव को प्रसन्ना करने के लिए ब्रम्हगिरी पर्वत पर तपश्चर्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्ना होके उनको वर मांगने को कहा तो गौतम ऋषि ने उनको सारी घटना बतायी और माँ गंगा के जल में स्नान करने को इच्छा जताई। और उनकी इच्छा भगवान शिव ने मान्य की और ब्रम्हगिरी पर्वत पर गंगा नदी औतारित की।
गंगा गोदावरी का उगम एक औदुम्बर के पेड़ के निचे से प्रवाहित होता है। पर गंगा नदी वहा से लुप्त होती रही. फिर वो गंगाद्वार पर्वत पर प्रकट हुई और वहासे भी लुप्त होगयी।
माँ गंगा वहापर अकेले रहने के लिए तैयार नहीं थी वो शिव भगवान को आग्रह कर रही थी की आप भी त्र्यंबकेश्वर में मेरे साथ वास्तव्य करे।
फिर गौतम ऋषि ने तंग आकर कुश (दर्भ ) के माध्यम से एक कुंड तैयार किया और अपने मंत्रो से गंगा जी को वह आमंत्रित किया। जिसको आज कुशावर्त कुंड नाम से जानते है। गंगा कुशावर्त कुंड में प्रस्थापित होने के बाद गौतम ऋषि ने अपने पातको को मिटाने के लिए वह स्नान किया।
08 Mar '22 TuesdayCopyrights 2020-21. Privacy Policy All Rights Reserved
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