इस जीवन मे सभी समस्याओ के लिए आध्यात्मिक निवारण हैं और विभिन्न अनुष्ठान करना उनमे से ही एक है। यह माना जाता है की, अन्य मंदिर के तुलना मे त्र्यंबकेश्वर मे पूजा करने से अधिक लाभ होता है। विभिन्न अनुष्ठान जैसे नारायण नागबली, कालसर्प पूजा, महामृत्युंजय मंत्र जाप, त्रिपिंडी श्राद्ध, कुंभ विवाह,रूद्र अभिषेक यहाँ त्रिम्बकेश्वर महादेव मंदिर परिसर मे अधिकृत पुरोहितो और ब्राह्मणो के मार्गदर्शन मे ही किए जाते है। इन पुरोहितो को ताम्रपत्र धारीके नाम से जाना जाता है।
महाराष्ट्र के नासिक शहर से २८ किलोमीटर दुरी पर त्र्यंबकेश्वर महादेव हिंदू मंदिर है। यह शिव मंदिर १२ ज्योतिर्लिंगों मे एक जाना जाता है। त्र्यंबकेश्वर के परिसर मे ब्रह्मगिरि पर्वत (जहा पवित्र नदी गंगा का उगमस्थान है) , कुशावर्त कुंड (पवित्र तालाब) है। कुशावर्त कुंड श्रीमंत सरदार रावसाहेब पार्नेकर द्वारा निर्मित है| जो इंदौर शहर के फडणवीस के नाम से जाने जाते थे| तथा वर्तमान त्रिम्बकेश्वर मंदिर श्रीमंत नानासाहेब पेशवा द्वारा सण १७५५-१७८६ मे निर्मित है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर ब्रह्मगिरि पर्वत के तलहटी पर बना है, जहा महाराष्ट्र की सबसे लम्बी गंगा नदी का उगमस्थान है। त्र्यंबक शब्द का अर्थ 'त्रिदेवता' (भगवन ब्रह्मा, विष्णु, महेश। मंदिर एक बीस से पच्चीस फुट की पत्थर की दीवार से बना है जो त्र्यंबकेश्वर मंदिर को एक समृद्ध रूप देता है।
त्र्यंबकेश्वर देवस्थान ट्रस्ट द्वारा त्र्यंबकेश्वर मंदिर लाइव दर्शन. यह एक नई सुविधा शुरू की है। त्र्यंबकेश्वर में पूजा कर रहे सभी (वीडियो में दिखाई देने वाले) पंडितजी, अधिकृत ताम्रपत्रधारी पुरोहित हैं।
त्र्यंबकेश्वर देवस्थान ट्रस्ट द्वारा लिया गया इस लाइव स्ट्रीमिंग का महत्वपूर्ण कदम उन सभी भक्तों के लिए है जो इस साल "महाशिवरात्रि" पर कोविड -१९ महामारी के कारण भगवान त्र्यंबकराज के आशीर्वाद लेने के लिए त्र्यंबकेश्वर नहीं आ पाए।
आप दिए गए लिंक पर क्लिक कर के त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के लाइव दर्शन कर सकते हैं।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर के खुलने और बंद होने का समय सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक है। भक्तों को केवल दर्शन के समय त्र्यंबकेश्वर आने की आवश्यकता है।
शिव पुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा ( सृजन ) और विष्णु (संरक्षण) की आपस मे सृजन के वर्चस्व के लिए बहस हुइ। भगवान शिवा ने उन दोनों की प्रकाश स्तम्भ को ढूंढने के लिए परीक्षा ली। दोनों भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने अपना मार्ग उस प्रकाश स्तम्भ पाने के कारन विभाजित कर लिया और भगवन ब्रह्मा ने झूट बोला जबकि भगवान विष्णु ने अपनी हार का स्वीकार कर लिया। तब भगवान शिवा ने ब्रह्म देव को शाप दिया की वे कभी भी किसी पूजा मे नहीं होंगे जबकि भगवान विष्णु की पूजा आखिरी अनुष्ठान तक होगी। तब से, सभी ज्योतिर्लिंग स्थान एक प्रकाश स्तम्भ को दर्शाती है।
ऐसा कहा जाता है की, कुल ६४ ज्योतिर्लिंग है उनमे से १२ ज्योतिर्लिंग पवित्र मानी जाती है जैसे त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र), सोमनाथ (गुजरात), मालिकारर्जुन (श्रीसैलम , आंध्र प्रदेश), महाकालेश्वर (उज्जैन, मध्य प्रदेश), ओंकारेश्वर (मध्य प्रदेश), केदारनाथ (हिमालय), भीमाशंकर (महाराष्ट्र), वैद्यनाथ ( झारखंड), नागेश्व( द्धारका), रामेश्वरम ( रामेश्वरम, तमिलनाडु), घृष्णेश्वर (औरंगाबाद , महाराष्ट्र)।
सभी ज्योतिर्लिंग असीम प्रकाश स्तम्भ को दर्शाती है| वह भगवन शिव के स्वभाव का प्रतिक है। त्रिम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग पर रोज अभिषेक होता है। अति पानी के वजह से शिवलिंग का अपक्षरण हो रहा है, जो की मनुष्य के स्वभाव को दर्शाता है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का मुकुट (हीरे, मोती कीमती रत्नो) से बनाया गया है। उस रत्नजड़ित मुकुट को पांडवों की आयु का मुकुट कहा जाता है।
नासिक, त्र्यंबकेश्वर मंदिर यह एक धार्मिक स्थल है, जहा विभिन्न पूजा करना लाभदायक है। यह कहा जाता है कि, बहुत सी घटनाओ की साक्षी यहाँ त्रिम्बकेश्वर शिव मंदिर परिसर मे है| जैसे भगवान राम उनके पिता राजा दशरथ का श्राद्ध करने के लिए यहाँ आये थे| गौतम ऋषि ने कुशावर्त कुंड मे पवित्र स्नान किया था। त्र्यंबकेश्वर मंदिर का मुख्य द्वार दर्शन के कतार मे लेके जाता है, जो भक्तों की सुविधा के लिए ६ से ७ लाइनों में विभाजित है।
मंदिर की शुरुआत मे, एक सफेद संगमरमर से बना नंदी है| यह नंदी भगवान शिव शंकर का वाहन है। ऐसा माना जाता है कि, यदि कोई नंदी के कान मे अपनी इच्छा / आकांक्षा बताता है, तो वह उसे भगवान शिव को बताते है| जिससे अपनी इच्छा जल्दी से पूरी होती है। नंदी मंदिर के बाद, "सभा मंडप" आता है,और फिर मुख्य मंदिर अतः मे है जहाँ लिंग स्थित है।
कुशावर्त एक पवित्र तालाब है जो त्र्यंबकेश्वर मंदिर के परिसर मे स्थित है। कुशावर्त तीर्थ
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से ४०० मीटर की दूरी पर स्थित है| वह १७५० मे बनाया गया २१
फ़ीट
गहरा कुंड है। कुशावर्त तीर्थ यह प्राचीन तर्थिस्थल है। ब्रह्मगिरी पर्वतसे उद्गम होकर निकली हुओ गोदावरी नदी गंगाद्वार पर्वतसे होकर आगे कुशावर्त कुंड के माध्यमसे भाविकोंको दर्शन तथा तीर्थस्थान का पुण्य देती है।
सिंहस्थ कुंभमेला इसी कुशावर्त तीर्थपर संपन्न होता है। त्र्यंबकेश्वर नगरी में होनेवाले सभी धार्मिक पूजा विधीयोंके दरम्यान इस कुंड में स्नान की परंपरा है।
महामृत्युंजय त्र्यंबकेश्वर भगवान की पालखी हर सोमवार को तथा महाशिवरात्री के दिन और त्रिपुरारी पौर्णिमा को संपन्न होता है, इस महत्त्वपूर्ण दिनोपर प्रभू श्री त्र्यंबकराज भगवान का तीर्थस्थान व अभिषेक पूजन भी कुशावर्त तीर्थ पे किया जाता है इतना बड़ा महत्त्व कुशावर्त तीर्थ का है। इसी तीर्थस्थल पर गंगा गोदावरी माता का भी मंदिर है ।
कुशवर्त तीर्थ के पास कही सारे पुरातन धार्मिक स्थल है , कुशेश्वर महादेव, शेषशायी भगवान विष्णु, चिंतामणी गणेश ये सब मंदिर कुशावर्त तीर्थ पर है।
ब्रह्मगिरि पर्वत पर पवित्र गंगा नदी की उत्पत्ति हुई थी और जिसे आमतौर पर गोदावरी नदी के रूप
मे जानी जाती है। पवित्र गंगा नदी ब्रह्मागीरी की श्रेणियों से होकर गुजरती है। कुल ७०० सीढ़ियाँ
ब्रह्मागीरी पर्वत पर चढ़ने के लिए लगती है, जिन्हे ४ से ५ घंटे आवश्यक है।
पवित्र गंगा नदी
तीन
अलग - अलग दिशाओं मे बहती है। अर्थात, पूर्व की ओर (गोदावरी के रूप मे जानी जाती है), दक्षिण
की
ओर (वर्ण के रूप मे जानी जाती है), और पश्चिम को पश्चिम की ओर बहने वाली गंगा के रूप मे जानी जाती है|
वह जाकर चक्र तीर्थ के पास गोदावरी नदी से मिलती है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर के ठीक
सामने
गंगा और अहिल्या नदी का पवित्र संगम है और यहाँ लोग संतान प्राप्ति के अनुष्ठान के लिए आते
हैं।
ब्रह्मगिरि पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से कुल ४२४८ फीट उचाई है।
ब्रम्हगिरी पर्वतपे उदूगम होकर निकलनेवाली गोदावरी नदी गंगाद्वार पर्वतपर भाविकों को दर्शन देती है। इस पर्वतपर जाने के लिए ७५० सिडीयाँ चढ़कर जाना पड़ता है। मात्र २ घंटे में आप गंगाद्वार पर्वतपर दर्शन कर वापर आ सकते है। गौतम ऋषीद्वारा बनाये गए १०८ शिवलींग भी यहाँ शोभायमान है। पास ही में गोरक्षनाथ गुफा के भी दर्शन होते है। पर्वतपर कोलांबिका माता मंदिर, अनुपमशिला, रामकुंड आदि दर्शननीय स्थल है। गंगा द्धार यह मुख्यद्धार है जो ब्रह्मगिरी पर्वत से आधा दूर है। गंगा द्धार पर पवित्र गंगा नदी का मंदिर भी मौजूद है। कहा जाता है कि गंगा पहली बार यहाँ गंगा द्धार पर प्रकट हुई थी और उसके बाद, ब्रह्मगिरि पर्वत से गायब हो गई। गोदावरी नदी ब्रह्मगिरि से गंगाद्वार आती है।
संत ज्ञानेश्वर महाराज जीके गुरु तथा ज्येष्ठ बंधू संत श्री निवृत्तिनाथ महाराजजी ने ब्रम्हगिरी और गंगाद्वार पर्वत के सानिध्य में इ.स। १२९७ को संजीवन समाधी ली है,उन्हें शिवजी का अवतार माना जाता है। यहाँ उनका प्राचीन समाधी मंदिर है। सम्पूर्ण महाराष्ट्र तथा पुरे भारतवर्ष से भक्त यहाँ दर्शन हेतु आते है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर से केवल १० मिनट की दुरी पर संत श्री निवृत्तिनाथ महाराज जी समाधी मंदिर है। हर साल पौष वद्य षटतिला एकादशी को यहाँ मेला लगता है।
माता निलांबिका देवी मंदिर, माता मटंबा देवी
मंदिर तथा भगवान दत्तगुरू का मंदिर नीलपर्वपर है। यह भी एक दर्शनीय तथा प्रेक्षणीय
स्थान है। १ घंटे के अंदर आप पैदल दर्शन लेकर इस पर्वतसे वापस आ सकते है।
पैदल चलनेवाले यात्रीओंके लिए सिडीयाँ तथा रास्ता है। इसी पर्वत के सान्रिध्यमें माता अन्नपूर्णा का भी मंदिर है।
पर्वतपर बनायी हुओ विशाल शिवपिंडी तथा त्रिशूल सबके आकर्षण का केंद्रबिंदू बना है। नवरात्री के दिन में निलांबिका माता तथा मटंबा
माता के दर्शन के लिए यहाँ भारी मात्रा में भाविक श्रद्धालू आते है।
श्री संत गजानन महाराज जी का भव्य संगमरवर का मंदिर यहाँ पे है। यहाँ का प्रसन्न, शांत, स्वच्छ परिसर यात्रियोंको आकर्षित करता है। यात्रियोंक निवास तथा भोजन की व्यवस्था है श्री गजानन महाराज संस्थान के द्वारा होती है।
भगवान दत्तात्रव के पूर्ण अवतार
श्रीस्वामी समर्थजी का विशाल मंदिर दर्शनीय तथा प्रेक्षणीय है। यात्रियोंके लिए निवास तथा भोजन की व्यवस्था होती है। भाविकोंको यहाँ आध्यात्मिक मार्गदर्शन किया जाता है।
समस्या समाधान केंद्र, बालसंस्कार केंद्र, मुल्यशिक्षण, कृषी सलाह, सामुहिक विवाह संस्कार, वास्तुशास्तर मार्गदर्शन हैः आदि सेवाए गुरुकुल संस्था के द्वारा विनामूल्य उपलब्ध करायी जाती है।
वाढोली में शिवशक्ति ज्ञानपीठ आश्रम में श्री स्वरूपेश्वर बनेश्वर महादेव मंदिर पुणे में श्रुतिसागर आश्रम द्वारा बनाया गया है।
ये मंदिर नाशिक से २० km दूर अंजनेरी किले और रंजनगिरी किले में स्थित है और सपकाल नॉलेज हब के पीछे है।
हाल ही में 'प्रति केदारनाथ' के नाम से लोकप्रिय हुआ है।
मंदिर केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति है, यह बहुत अच्छी तरह से डिजाइन किया गया है, हम प्रकृति की चुप्पी का अनुभव कर सकते हैं, पक्षियों की आवाज़ें, जानवरों को देखा जा सकता है।
मंदिर को 2014 में समर्पित किया गया है। मंदिर की अवधारणा स्वामी स्तिथप्रज्ञानंद के माध्यम से सामने आई है।
भगवान शिव को समर्पित त्र्यंबकेश्वर एक पवित्र स्थान है। हिंदू परंपरा मे, यह माना जाता है कि जो कोई व्यक्ति त्र्यंबकेश्वर मंदिर मे दर्शन करता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष (मुक्ति ) प्राप्त होता है। इसके कई कारण है जैसे यह भगवान गणेश की जन्मभूमि भी है, जिसे त्रिसंध्या गायत्री के रूप मे जानी जाती है।त्र्यंबकेश्वर, श्राद्ध अनुष्ठान (पूर्वजो की आत्माओं को मुक्ति दिलाने के लिए किया जाने वाला हिंदू अनुष्ठान) करने के लिए सबसे पवित्र स्थान है।
सिंहस्त माहात्म्य भगवान राम त्र्यंबकेश्वर मे यात्रा करने आये थे ऐसा कहा जाता है। आम तौर पर, सभी श्राद्ध विधी गंगा नदी (नासिक) मे किए जाते हैं| यदि गंगा नदी मे नहीं किया जाए, तो यह एक धार्मिक पाप के रूप मे माना जाता है। इस तरह के अन्य अनुष्ठान जैसे गंगा पूजा, देह-शुद्धि प्रायश्चित्त,तर्पण श्राद्ध, वयन, दशादान, गोप्रदान, आदि भी गंगा नदी पर किये जाते है।
त्र्यंबकेश्वर मे कई रुद्राक्ष के वृक्ष हैं| जैसे कि भगवान त्र्यंबकेश्वर को रुद्र, लघु रुद्र, महा रुद्र, अतिरुद्र पूजा के रूप मे जानी जाती है। त्र्यंबकेश्वर नगरी मे अन्य धार्मिक संस्थान भी हैं| जैसे कि पाठशाला, संस्कृत पाठशाला, कीर्तन संस्थान, और प्रवचन संस्थान। संस्कृत पाठशाला ने बहुत सरे शिष्यों को शिक्षा दी है जो अभी शास्त्र और पुरोहित के नाम से जाने जाते है।
त्र्यंबकेश्वर यह एक धार्मिक स्थल है जहा सारे भारत से विभिन्न अनुष्ठान करने के लिए और भगवान शिवा का आशीर्वाद पाने के लिए भक्त आते है।
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