हिंदू धर्म में भगवान् शिव को सबसे शक्तिशाली देवता मन जाता है। भगवान् शिव की महामृत्युंजय जाप से साधना करना अधिक लाभकारी है। महामृत्युंजय मंत्र सभी बाकि संस्कृत मंत्रो के तुलना में अधिक प्रचलित है। यह मंत्र "रूद्र मंत्र " या "त्र्यंबकम मंत्र" के रूप में भी जाना जाता है। प्राचीन पवित्र ग्रंथ ऋग्वेदा ( आर वि ७.५९.१२) में इस मंत्र की पंक्तियो का जिक्र है, बाद में "यजुर्वेदा" ( टी इस १.८.६. आय। वि ५ ३. ६०) में भी यह मंत्र पाया गया है। कई बार यह मंत्र-संजीवनी मंत्र के रूप में भी जाना गया है, क्योकि यह एक ऋषि शुक् को दी गई जीवन-बहाली का एक तत्व।
यह माना जाता है, महामृत्युंजय मंत्र न की केवल शारीरिक प्रकृति के उपचान में लेकिन मानसिक शांति के लिए भी अधिक उपयोगी है। यह एक शक्तिशाली मंत्र है जो देवो के देव महादेव को समर्पित है। त्रिदेवता (भगवन ब्रह्मा , भगवान विष्णु और भगवन महेश) में से एक देवता जो बुरी शक्तियों का नाश करने के लिए जाने जाते है।
भगवान् शिवा मृत्यु संबंधित तत्वों के रक्षक है, इसीलिए अप्राकृतिक मृत्यु से बचने के लिए रोज १०८ बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना उचित है।
महामृत्युंजय मंत्र ३२ शब्दों के प्रयोग से बना है तथा इस मंत्र के पहले ॐ लगा देने से कुल ३३ शब्द हो जाते हैं। इसीलिए महामृत्युंजय मंत्र को 'त्रयस्त्रिशाक्षरी' मन्त्र भी कहा जाता हैं।
महा शब्द का अर्थ "सर्वोच्च" है और मृत्युं शब्द का अर्थ "मृत्यु" है जब की, जाया शब्द का अर्थ "विजय" होता है। महामृत्युंजय मतलब बुरी चीजों पर विजय हासिल करना। देवता शिव बुरी शकतोयो के संहारक है। महामृत्युंजय जाप मुख्यतः दीर्घकाल रहने वाली बीमारियो से छुटकारा पाने के लिएऔर लम्बी आयु पाने के लिएकिया जाता है। रोज १०८ बार महामृत्युंजय जाप करने से अधिक लाभ, बीमारियों पे , मानसिक तनाव पे उपचारात्मकता मिलती है।
यह एक शक्ति मंत्र भगवान शिव को सबंधित है, जब जीवन में स्थिति बिगड़ जाती है तब महामृत्युंजय जाप करने से जटिल जीवन से मुक्ति मिलती है। जो लोग मृत्युशय्या पे है उनके लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना एक निवारण की तरह काम करता है।
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ यह है की हम आपकी भगवान शिव की आराधना करते हैं। आप खुशी हैं जो हमारा पोषण करते हैं, हमारे स्वास्थ्य को पुनर्स्थापित करते हैं, और हमें (लोगों को) कामयाब होने का कारण बनते हैं। इस महा मृत्युंजय मंत्र जाप के लिए सबसे अच्छा समय (मुहूरत) ब्रह्मा मुहूरत है जो सुबह ४:०० का माना जाता है। महा मृत्युंजय जाप हमेशा शुद्ध वातावरण में ही करने की आवश्यकता है। जिससे आपका मन उन सभी चिंताओं को दूर कर सके और आपका पूरा दिन सकारात्मक और प्रेरित रहने के लिए।
महामृत्युंजय मंत्र पवित्र ग्रंथ ऋग्वेद में पाया गया है, जो की एक प्राचीन हिंदू पाठ है। इस मंत्र का सूत्रीकरण ऋषि मार्कण्डेय द्वारा किया गया जब वे चंद्र प्रजापति दीक्षा द्वारा दिए गए शाप से पीड़ित थे। यह कहा जाता है की, महा मृत्युंजय मंत्र जाप से शाप का सम्पूर्ण प्रभाव कम हुआ और उसके बाद भगवान शिव ने उनके माथे पे चंद्र को प्रस्थापित किया।
यह धार्मिक महा मृत्युंजय मंत्र है जिसे व्यापक रूप से त्र्यंबकम मंत्र के रूप में जाना जाता है। कई लोगों के अनुसार, यह माना जाता है कि महा मृत्युंजय मंत्र के जाप से कंपन की निर्मिति होती है जिससे मानव शरीर के अच्छे स्वास्थ्य की सुनिश्चिति और भौतिक शरीर को पुन: उत्पन्न करने में मदद होती है।
यह सबसे प्रभावशाली मंत्र है जो दीर्घायु प्रदान करता है, दुर्भाग्य और अप्राकृतिक मृत्यु को टाल देता है। मुख्यतः रूप से यजुर्वेद के भाग के रूप में माना जाने वाला, यह सूक्त भय की समाप्ति का कारण बनता है। हिंदू धर्म में इस महा मृत्युंजय मंत्र जाप का १०८ बार जप करने का अत्यधिक महत्व है। यह चारों ओर की नकारात्मकता (बुराई) समाप्त करता है और सकारात्मकता लाता है।
महामृत्युंजय मंत्र के रचयिता मार्कण्डेय ऋषि है। इस मंत्र के जाप से ही मार्कण्डेय ऋषि को अमरत्व की प्राप्ति हुई थी। मृत्यु पर विजय प्राप्त होने के कारण इस मंत्र को महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।
कई लोग महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष माला से करते हैं, जिसमें मुख्य रूप से १०८ मनके होते हैं। इस धार्मिक महा मृत्युंजय मंत्र के जप की संख्या गिनने के लिए उन १०८ मनकों का उपयोग किया जाता है। यह वर्णित है कि संख्या "१ ", "० ", और "८ " मूल रूप से एकता दर्शाता है, और अप्रत्यक्ष रूप से वह ब्रह्मांड को दर्शाता है।
वैदिक गणितीय व्याख्या के अनुसार, १०८ यह संख्या सूर्य और पृथ्वी और पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी को दर्शाती है, जो सूर्य और चंद्रमा के व्यास का १०८ गुना है। आमतौर पर, सभी शक्तिशाली मंत्रो का १०८ बार जाप किया जाता है, जिससे भगवान शिव की दिव्य ऊर्जा से रक्षा हो।
महामृत्युंजय जाप द्वारा भगवान शंकर द्वारा मनोकामना की पूर्ति हेतु महामृत्युंजय जाप विधि आगे दी गयी है -
महामृत्युंजय मंत्र का लाभ शास्त्रों के अनुसार पुरश्चरण विधि के माध्यम से होता है जो पांच प्रकार का होता है-
१)जाप - शास्त्रों के अनुसार महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जाप करने से यह मंत्र जागृत होकर अलभ्य लाभ देता है।
२) हवन - पुरश्चरण विधि में जप करते समय "ॐ" एवं "नम:" को गिना नहीं जाता। जप संख्या पूर्ण होने के बाद महामृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जप का दशांश भाग यानी १२५०० मंत्र के आखिर में "स्वाहा" लगाकर हवन किया जाता है।
३) तर्पण - हवन के दशांश भाग का तर्पण यानी १२५० करना है। मंत्र के अंत मे तर्पयामि लगाकर तर्पण किया जाता है।
४) मार्जन - तर्पण के दशांश भाग यानी १२५ मंत्र का मार्जन होता है जिसमे मंत्र के अंत में ‘मार्जयामि’या ‘अभिसिन्चयामी लगाकर डाब लेकर पानी मे डुबा कर अपने पीछे की ओर छिडकना से मार्जन विधि पूर्ण होता है।
५) ब्राह्मण भोजन - मार्जन के दशांश भाग यानी १३ ब्रह्माण वृन्दो को भोजन कराया जाता है।
त्र्यंबकेश्वर यह एक धार्मिक स्थल है जो महाराष्ट्र के नासिक में स्थित है और जिस मंदिर की गिनती १२ ज्योतिर्लिंग में से एक की जाती है। यह कहा जाता है की त्र्यंबकेश्वर जैसा कोई अलग पवित्र स्थान, गंगा नदी जैसे पवित्र नदी और पवित्र पर्वत जैसे ब्रह्मगिरि पर्वत (जहा पवित्र गंगा नदी का उगम हुआ) है।त्रिसंध्या गायत्री जैसे स्थान, और भगवान गणेश के जन्मस्थान जैसे स्थान त्र्यंबकेश्वर में है।
धर्मा सिंधु के अनुसार, (जो की प्राचीन हिन्दू धार्मिक लेख) है, विभिन्न पूजै जैसे नारायण नागबली, काल सर्प दोष पूजा करना , महामृत्युंजय जाप करना उचित मन गया है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर में इस अनुष्ठान को करने से, संबंधित व्यक्ति भगवान त्र्यंबकराज के साथ जुड़ जाते है। विष्णु पुराण के अनुसार, गोदावरी देवी और गौतम ऋषि के निवेदन से भगवान त्र्यंबकेश्वर में रहे थे।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर में, पंडितजी आपको महामृत्युंजय मंत्र जाप और बाकि अनुष्ठान करने के लिए मार्गदर्शन करेंगे। उसके साथ ही सामाग्री और मुहूर्त का शुभ समय की जानकारी भी वे आपको प्रदान करेंगे।
जाप करना मतलब भगवान शिव को प्रार्थना करना, जिनके आशीर्वाद से मृत्यु पर विजय हासिल हो। बहुत सरे कारण है महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने के लिए, जिससे न चाही स्थिती का नाश हो कर, दुख को हटा देता है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर में, जाप विधी के दिन, पंडितजी शुरू में महा मृत्युंजय मंत्र जाप का १२,५०० बार करने का संकल्प करते हैं। संकल्प करने के बाद, महामृत्युंजय मंत्र का हवन किया जाता है। महामृत्युंजय हवन अधिकृत पुरोहितों द्वारा किया जाता है, जो त्र्यंबकेश्वर में "ताम्रपात्रधारी " के नाम से जाने जाते हैं, जिन्हे महामृत्युंजय मंत्र जाप माला जैसे अनुष्ठान करने का विशाल अनुभव है और वे कालसर्प योग पूजा, नारायण नागबली पूजा, श्राद्ध, आदि अनुष्ठान करने का भी अधिकार रखते है। ।
महामृत्युंजय जाप विधी को शुभ तिथि और समय (मुहूरत ) में ही किया जाना चाहिए। यह कहा जाता है की, श्रावण माह में महा मृत्युंजय मंत्र जाप माला विधी करने से अधिक फायदा होगा। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में भगवान त्र्यंबकेश्वर का अनुष्ठान करने से हर मनोकामना पूरी होती है। हमारे त्र्यंबकेश्वर गुरूजी से सीधा संपर्क करके इस विधी को करवाने के लिए सही समय और तारीख की जानकारी आप पता कर सकते हैं।
१) महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय शरीर एवं मन स्वच्छ होना चाहिए।
२) इस मंत्र का जाप करते समय शिवलिंग या भगवान शंकर की प्रतिमा / तस्वीर या महामृत्युंजय यंत्र में से कोई एक प्रतिक रूप में आपके पास होना चाहिए।
३) महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने के समय पर तथा अन्य कोई भी पूजा-पाठ या आराधना करते समय अपना मुख पूर्व दिशा की ओर ही रखें।
४) मंत्र जाप हमेशा कुशा से निर्मित आसन पर ही किया जाना चाहिए।
५) मंत्र को फलीभूत होने के लिए स्पष्ट रुप से उच्चारण करना अति आवश्यक है अन्यथा मंत्र जाप का लाभ नहीं होता।
६) महामृत्युंजय मन्त्र का जाप धीमे या तेज गति से न करें। जप के समय अपने होंठ हिलें पर आवाज़ सुनाई न दे, इस प्रकार से जप किया जाता है।
७) महामृत्युंजय मंत्र का जप करते और जाप के बाद मांस-मदिरा तथा अन्य प्रकार के व्यसनों से दूर रहना चाहिए।
८) धूप-दीप जलाकर जप करना चाहिए।
९) महामृत्युंजय मंत्र का जप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का ही प्रयोग करना चाहिए।
१०) गौमुखी रुद्राक्ष माला रखकर मंत्र जप करना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप सवा लाख बार करनेसे इच्छित मनोकामना पूर्ण होती है, किन्तु यह मंत्र जाप एक दिन में पूर्ण नहीं होता इसीलिए प्रतिदिन १००० बार मंत्र जाप करे। लगातार दिन में १००० बार मंत्र जाप करने से १२५ दिन में सवा लाख मंत्र जाप पूरा होता है। अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए महामृत्युंजय जाप अकेले भी किया जाता है अथवा समूह में भी किया जाता है। महामृत्युंजय मंत्र से लाभ पाने के लिए कम से कम १०८ बार मंत्र जप किया जाता है। सवा लाख मंत्र जाप ५ या ७ पण्डितजी द्वारा भी किया जाता है।
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