नारायण नागबली पूजा यह एक वैदिक अनुष्ठान है जो ३ दिन की विधी है, नारायण नागबली पूजा में कुल २ प्रकार की अलग अनुष्ठाने है। त्र्यंबकेश्वर विभिन्न पूजा और अनुष्ठान जैसे नारायण नागबली, त्रिपिंडी श्राद्ध, महामृत्युंजय जाप, कालसर्प पूजा आदी, करने के लिए सबसे पवित्र स्थान माना जाता है।
पितृ दोष या पितृ शाप को मिटाने के लिए ( पूर्वजो के असंतुष्ट इच्छाओ को पूरा करने के लिए) नारायण बली पूजा करते है, तथा साँप को मारने के पाप से छुटकारा पाने के लिए नागबली पूजा की जाती है। इस पूजा प्रक्रिया में, गेहूं के आटे से बने साँप के शरीर पर अंतिम संस्कार किया जाता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार, यह पूजा तब की जाती है जब कोई व्यक्ति की असामान्य मृत्यु जैसे बीमारी से
मौत, आत्महत्या, जानवरों द्वारा, शाप द्वारा, सांप के काटने से मौत, आदी से होती हैं।
नारायण नागबली पूजा की विधी अंतिम संस्कार में की जाने वाली विधी से सामान है। पूजा के समय जपे
गए सभी मंत्र पूर्वजो के आत्माओं की असंतुष्ट इच्छाओं को आमंत्रित करते हैं। क्योंकी यह कहा जाता है
कि अंतिम संस्कार आत्माओं को दूसरी दुनिया से मुक्त करता है।
जब कोई व्यक्ति गलती से सांप को मारता है तब उसे शाप मिलता है, जो की त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पास अहिल्या गोदावरी मंदिर और सतीके महा-स्मशान की जगह नागबलि पूजा करने से ख़त्म होता है।
नारायण नागबलि यह एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो की त्र्यंबकेश्वर मंदिर क्षेत्र में मंदिर के पूर्व द्वार पर स्थित अहिल्या गोदावरी संगम और सती महा-स्मशान में की जाती है। एक प्राचीन हिंदू शास्त्र के अनुसार, धर्म सिंधु में उल्लेख किया है, कि नारायण नागबली पूजा का यह अनुष्ठान केवल त्र्यंबकेश्वर में किया जाता है।
नारायण बली पूजा को "मोक्ष नारायण बली" पूजा के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह पूजा परिवार के सदस्यों द्वारा उनके पूर्वजो की इच्छाओं को पूरा करने के लिए की जाती है। मोक्ष का मतलब आत्मा की स्वतंत्रता, मोक्ष नारायण बली अनुष्ठान का अर्थ गरुड़ पुराण के ४० वें भाग में वर्णित है।
नारायण नागबली पूजा विभिन्न समस्याओं को मिटाने के लिए की जाती है, जैसे कि भूत प्रेत बाध, व्यापार में विफलता, वित्तीय हानि, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं,शैक्षणिक समस्या, विवाह समस्याएं, आकस्मिक मौतें, अनावश्यक खर्च, और सभी प्रकार के शाप।
नारायण नागबली पूजा की प्रक्रिया को पूरा होने में कुल तीन दिन का समय आवश्यक है। इस पूजा करने से बहुत सरे लाभ होते है जैसे अच्छा स्वास्थ्य, व्यवसाय और व्यापर में सफलता मिलेगी।
यह नारायण नागबली पूजा को कुल ३ दिन का समय आवश्यक है और इसके पहले दिन, भक्त को पवित्र कुशावर्त कुंड (कुशावर्त तालाब) में स्नान करना होता है उसके बाद "दशदान" यानी, दस चीजों को दान में देने का संकल्प करना होता है। भगवान शिव की साधना करने के बाद, सभी भक्तो को नारायण नागबली पूजा करने के लिए धर्मशाला जाना होता है। नारायण नागबली पूजा दो दिनों तक गोदावरी और अहिल्या नदी के संगम के स्थान पर सम्पन्न होती है।
सनातन धर्म में सभी पूजाए प्रथम संकल्प, न्यास और कलश पूजन से शुरू होती है। उसके बाद भगवान सूर्य, गणेश, और विष्णु का अनुष्ठान होता है। उसके बाद, पांच देवताओं, भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान महेश, यम, और तत्पुरुष की पूजा होती है।
फिर क्रमशः अग्नि स्थापना, पुरुषसूक्त हवन, एकादशी विष्णु श्राद्ध, पंचदेवता श्राद्ध बलीदान, पिंड दान, पराशर, और द्वादश कर्म किए जाते हैं। इस अनुष्ठान को करने के बाद, उपासक किसी को छू नहीं सकते यानि उन्हें एक दिन के लिए सूतक का पालन करना होता है।
ऐसे सारे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, यह नारायण नागबली पूजा अनुष्ठान स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ,पारिवारिक समस्याओ से छुटकारा, या किसी साँप / कोबरा द्वारा मार दिया या काट दिया गया तो यह अनुष्ठान करते है।
त्र्यंबकेश्वर यह एक पवित्र स्थान है जहा विभिन्न पुजा करने से उनका फल जल्द ही प्राप्त होता है।त्र्यंबकेश्वर महादेव मंदिर की शिव लिंग त्रिदेवता ( भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान महेश) को दर्शाती है। भगवान शिवा के साथ साथ मंदिर में, श्री रामा, केदारनाथ , देवी लक्ष्मी, नारायण, गंगा देवी, रामेश्वर, गौतमेश्वरा, परशुराम आदि की भी पूजा की जाती है। जिससे मंदिर में एक सकारत्मक ऊर्जा निर्माण होती है, और उपासक को सभी देवता के आशीर्वाद से कम समय में अधिक फल प्राप्त होता है। भागवत पुराण में उल्लेख किये गए समुद्र मंथन के अनुसार, यह कहा जाता है की, केवल भगवान शिव आत्मसमर्पण आत्माओं के पाप को मिटा सकते है, तो कोई भी अनुष्ठान जैसे नारायण नागबलि करने के लिए त्र्यंबकेश्वर स्थान अधिक उचित है।
नारायण नागबली यह एक अनुष्ठान है जो की सही समय यानी शुभ मुहूरत में करने से, अनुष्ठान करने वाले भक्तो की सभी कामना पूरी होती है। जब बृहस्पति या शुक्र जैसे ग्रह पौष माह में स्थापित होती है, तो उसे लूनार (चंद्र) कैलेंडर में अधिक मॉस के रप से जाना जाता है। "धनिष्ठा पंचक" और " त्रिपाद नक्षत्र" नारायण नागबली को करने के लिए शुभ समय नहीं है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर परिसर में स्थित गुरुजी द्वारा शुभ तिथियों पर नारायण नागबली पूजा की जाती है।
पूजा का मूल्य पुरोहितो द्वारा सुझाया जायेगा,और पूरी तरह आवश्यक सामग्री पर निर्भर होगा। उपासक को लगने वाला खाना भी उसमे शामिल होगा। पूजा होने के बाद भक्तो द्वारा ब्राह्मण को दक्षिणा देना अनिवार्य है।
नारायण नागबली पूजा को करने में कुल ३ दिन की आवश्यकता है। हिन्दू शास्त्र के अनुसार, केवल पुरुष पिंड दान विधी कर सकता है। यजमान को पूजा के एक दिन पहले ही त्र्यंबकेश्वर मे उपस्थित रहना चाहिए। पूजा शुरू होने के बाद भक्त त्र्यंबकेश्वर को छोड़ कर कही नहीं जा सकते, केवल पूजा ख़त्म होने के बाद तीसरे दिन वे कहीं और जा सकते है। पूजा के ३ दिनो में, पूजा करने वाले भक्त ब्राह्मणो द्वारा दिए गए सात्विक भोजन का ही सेवन कर सकते है।
पूजा मे पुरुषो के लिए वस्त्र, सफ़ेद रंग की धोती, गमछा, रुमाल, और सफ़ेद रंग की साडी महिलाओ के लिए अनिवार्य है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग क्षेत्र में नारायण नागबलि पूजा कराने का विशेष अधिकार ताम्रपत्रधारी पण्डितजी को वंश-परम्परा से प्राप्त है। इस विशेष पूजा का मुहूर्त ताम्रपत्रधारी पण्डितजी संपर्क करने से बताते है।
त्र्यंबकेश्वर में परंपरागत अधिकार के अनुसार की जानेवाली पूजा केवल ताम्रपत्रधारी गुरूजी ही कर सकते है। त्रिम्बकेश्वर में सदियोसे विभिन्न धार्मिक पुजाएँ चली आ रही है, जिसका अधिकार यहाँ के स्थानिक पुरोहित के पास होता है। सरदार श्री बालाजीराव पेशवा द्वारा दिए गए ताम्रपत्र पर यह अधिकार अंकित किया गया है। नारायण नागबलि पूजा त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पूर्व दरवाज़े पर स्थित अहिल्या गोदावरी मंदिर एवं सती महाश्मशान में की जाती है।
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